दिन रात की – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १४

दिन रात की – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १४


दिन रात की माला फिरी श्रीकृष्ण जी श्रीकृष्ण जी।
ठहरा जु़बां पर हर घड़ी, श्रीकृष्ण जी, श्रीकृष्ण जी॥
कहता सदा सीने में जी, श्रीकृष्ण जी, श्रीकृष्ण जी।
जाते जहां कहते यही, श्रीकृष्ण जी, श्रीकृष्ण जी॥
जो प्रेम के पूरे हुए, उनके यही अतवार हैं॥१४॥


राम कृष्ण हरी आपणास या अभंगाचा अर्थ माहित असेल तर खालील कंमेंट बॉक्स मध्ये कळवा.

दिन रात की – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – १४