जय जय सत्य कबीर आरती
सत्यनाम सतसुकृत, सत रत हटकामी।
विगत कलेश सत धामी, त्रिभुवन पति स्वामी ॥ १ ॥
कमल पत्र पर शोभित, शोभाजित कैसे।
नीलाचल पर राजित, मुक्तामणी जैसे ॥ २ ॥
जयती जयती कबीरं, नाशक भवभीरं । धारयो मनुज शरीरं, शिशुवर सरतीरं ॥ ३ ॥
परम मनोहर रूपं, प्रभुदित सुखराशी
अति अभिनव अविनाशी, काशीपुरवासी ॥ ४ ॥
हंस उबारन कारन, प्रगटे तनधारी।
पारख रूप विहारी, अविचल अविकारी ॥ ५ ॥
साहेब कबीर की आरती, अगनित अघारी।
धरमदास बलिहारी, मुध मंगल कारी ॥ ६ ॥
साहेब कबीरकी आरती, जो कोई गावे।
भक्ति (मुक्ति) पदारथ पावे, भव में नहीं आवे ॥ ७ ॥
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