श्रीकृष्ण व नरसी मेहता

वह साधु अपने – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ३०

वह साधु अपने – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ३०


वह साधु अपने ले रुपे, फिर शहर के भीतर गए।
कारज जो करने थे उन्हें, मन मानते वह सब किये॥
फिर द्वारिका से चलके वह, नरसी की नगरी में गये।
नरसी से लोगों ने कहा, नरसी बहुत दिल में डरे॥
दूंगा कहां से मैं रुपे, यह तो बिपत के भार हैं॥३०॥


राम कृष्ण हरी आपणास या अभंगाचा अर्थ माहित असेल तर खालील कंमेंट बॉक्स मध्ये कळवा.

वह साधु अपने – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ३०

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