श्रीकृष्ण व नरसी मेहता

हैं रूप दर्शन – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ६

हैं रूप दर्शन – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ६


हैं रूप दर्शन आस के, चित के रूपे मन में भरे।
हुंडी लिखें उस साह को, जाते ही जो पल में मिले॥
लेखन से लेखा चाह का, चित की सूरत में लिख रहे।
जिस लोक में है मन लगा, उस बास की बंसनी बजे॥
नित प्रेम की हों बीच में, बहियां धरीं दो चार हैं॥६॥


राम कृष्ण हरी आपणास या अभंगाचा अर्थ माहित असेल तर खालील कंमेंट बॉक्स मध्ये कळवा.

हैं रूप दर्शन – श्रीकृष्ण व नरसी मेहता कविता – ६

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *